Natasha

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लेखनी कहानी -27-Jan-2023

सच्चा साथी


एक था नौजवान। देखने में सुंदर, स्वस्थ और आकर्षक था, परंतु कुसंगत में बिगड़ गया था। एक दिन मौसम सुहाना था। भीनी-भीनी हवा चल रही थी। नौजवान छत पर पतंग उड़ा रहा था कि डोर टूट गई, पतंग जंगल में एक साधु की कुटिया के पास जा गिरी। उसने पतंग उठाके कुटिया में रख दी। नौजवान वहीँ पहुँच गया।

साधु से पूछा - " आपने यहाँ कोई पतंग गिरती तो नहीं देखी ? "

साधु ने कहा - " अंदर कुटिया में धरी है। तेरी है तो तू लेजा, मेरे किस काम की ! " पतंग उसे देते हुए साधु ने पूछा - " क्या रोज़ पतंग उड़ाते हो ?"

नौजवान ने उत्तर दिया - " नहीं जी ! जब यार लोग न आएँ, ताश और जुए का दौर न चले तो अकेला क्या करूँ ? "

साधु ने पूछा - " तू ताश और जुआ भी खेलता है ? "

नौजवान बोला - " जब पीने-पिलाने का अवसर न मिले, यार लोग भी आए हों, तब और क्या करें ? "

साधु चौंके - " तू शराब भी पिता है ? "

नौजवान ने बताया - " जब वेश्याओं के यहाँ नाच-गाने का अवसर न मिले, तब ! "

साधु चिल्लाकर बोले - " तू गन्दी औरतों के यहाँ भी जाता है ? अरे, क्यों सर्वनाश के मार्ग पर बढ़े जा रहे हो ? यह तो मौत का रास्ता है, जीवन का नहीं। यह जो जवानी है न, एक बार चली गई तो दोबारा नहीं लौटती। क्यों नष्ट करते हो यौवन को ? आज तेरे शरीर में शक्ति है, आँखों में ज्योति है, मुखड़े पर आकर्षण है, हाथों में ताकत है। अभी तो तू पहाड़ों का सीना चीर सकता है, तूफानों को ललकार सकता है, सागरों का मंथन कर सकता है। परंतु यह शक्ति तो सदा रहती नहीं। ऐसा भी समय आएगा कि हाथ हिलाना चाहेगा तो हिलेगा नहीं, पाँव से चलना चाहेगा तो चलेंगे नहीं। आज तो आकाश के तारे भी गिन सकता है, परंतु शरीर ढल गया तो पास रखी लाठी भी दिखाई नहीं देगी। अब भी चेत ! "

साधु की वाणी में प्रभाव था। नौजवान के मन पर चोट लगी। वह हाथ जोड़कर बोला - " महात्मन ! आप-जैसी बात कभी किसी ने कही नहीं। आपने तो मेरी आँखे खोल दीं। आप आज्ञा दें तो कभी-कभी आपके पास आ जाया करूँ ? "

साधु बोले - " जब चाहो, आ सकते हो। मेरे यहाँ कोई रोक-टोक नहीं। "

नौजवान नित्य ही साधु के पास आने लगा। साधु ने उसे यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान आदि की बातें समझाईं। कई प्रकार के प्राणायाम का अभ्यास कराया। यह भी बताया कि प्राण को पाँव के अंगूठे से खींचके कैसे ब्रह्मरंध्र में पहुँचाया जाता है। सब-कुछ बताया, परंतु समाधि की विधि नहीं बताई। नौजवान ने एक दिन समाधि की विधि जानने की प्रार्थना भी की, परंतु महात्मा ने स्पष्ट कह दिया - " जब तक घर और संसार से माया का नाता नहीं टूटता, तब तक समाधि का कोई लाभ नहीं। "

युवक बोला - " नाता कैसे टूटेगा ? यह तो एक सच्चाई है कि मेरी माँ है, पिता है, पत्नी है। "

साधु ने कहा - " यह कोरा भ्रम है। न ये सदा से तेरे माता-पिता और कुटुंबी थे, न सदा रहेंगे। सच्ची माता, सच्चा पिता और सखा तो परमात्मा है।

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